मेहबूबा

‘चलिए, जल्दी कीजिए, गाड़ी का समय हो गया है। आपका सामान चेक करके चढ़ना। वापिस लौटकर आना मिले भी या नहीं भी।गाँव के जो भी लोग मिले उसे यह बता देना।’ कहते हुए स्टेशन मास्टर रेल के स्टेशन पर दौड़ रहे थे। हिंदुस्तान से पाकिस्तान ट्रेन जा रही थीं।ये बात है 1948 के अगस्त माह की, जब भारत दो टूकडों में बँट रहा था।

हिंदुस्तान और पातिस्तान के बीच रेखांकन करनेवाले ने दोनों देश की भौगोलिक स्थिति को बिना जाने ही रेखा खींच दी थीं। यह बात उस गाँव की है जो आधा-आधा बँटा था पाकिस्तान और हिंदुस्तान में। गाँव के सब लोग मिलजुलकर, संप से रहते थे, जातिवाद की बात तो ठीक है पर गाँव के लोग इतने अच्छे थे कि कह रहे थे, मन से रंज कर रहे थे कि अंग्रेज देश छोड़कर क्यों जा रहे है!

सर्वत के अब्बा ने  सर्वत को आधे घंटे में सारा सामान जुटाने को कहा था, और खुद जहाँ काम करते थे वहाँ हिसाब करने चले गये थे। सर्वत और उसकी अम्मी ने जो था सब जैसे-तैसे इकठ्ठा कर लिया था।

‘चलो जल्दी से स्टेशन पर। यह अंतिम ट्रेन है। सामान छूट भी जायेगा तो चलेगा परंतु जान बची तो लाखो पाये, अल्लाह का शुक्रिया। वहाँ जाकर करेंगे क्या? काम मिल जाए तो बहुत ही अच्छा।‘

‘अब्बा, झरीना….. ‘बेटा उसके पिता ने तो हिंदुस्तान में रहना तय किया है। उसकी मां हमारी जातवाली पर बापु तो नहीं है। हमारा यहाँ रहना जितना जोखिमकारक है उतना ही उन लोगों का हमारे साथ आना।‘

‘परंतु हमारे निकाह का क्या?  परसो ही तो है। उसके हाथ में भी मेहंदी लग चुकी है। अब्बु, हम साथ-साथ में तो बड़े हुए हैं। उसकी मां की मृत्यु के बाद अम्मी ने ही तो उसे सहारा दिया है। वह एकदम से अकेली हो जाएगी।‘  अधिक सोच मत, बेटा। अब तो उसके घर की ओर देखना भी मत, बेटा। देश की परिस्थिति बदल चुकी है। अब तो तुं ही हमारे जीवन का केवल एक आधार हो। तेरी सुरक्षा और सलामती हेतु हम इस प्यारे हिंदुस्तान को छोड़ने के लिए तैयार हुए हैं।

अब्बा, मैं झरीना को मिल आऊँ? वह मेरी बाट देख रही होगी। कहते हुए बिना उत्तर की राह देखें सर्वत दौड़ा झरीना को मिलनें हररोजवाले स्थान पर।

शादी के लिए लिया हुआ सोने- सा पीला ड्रेस और अम्मी ने शादी के लिए हुए गहनों से सज्ज झरीना उसकी राह देखती हुई खड़ी थी। धीरे चहल कदमी करते हुए आगे आयी और सर्वत की हाँफती हुई छाती पर अपना सर डाल दिया।

निःशब्द साँस की भाषा, ‘ऐसे ही तैयार रहना, मैं लेने आऊँगा। हाथ की मेहंदी सुखने मत देना’।

ट्रेन की सीटी बजी। सर्वत दौड़ा। झरीना की विरुद्ध दिशा में! किसी ने तो देखा होगा सर्वत की राह

तके खड़ी झरीना को!

  • डॉ.नयना डेलीवाला

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